IN8@गुरुग्राम …. श्यामा राजपूत…। वह नाम जिसने जीवन के अंधेरों में शमां की तरह जलकर आगे बढ़ना सीखा है। जिंदगी ने उन्हें ऐसा दर्द दिया, जिसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकती। उसके पति की सड़क हादसे में मौत हो गई थी। रही-सही कसर उसके ससुरालीजनों ने उसके शिशु व उसको मनहूस की संज्ञा देकर पूरी कर दी। इस दर्द से श्यामा थोड़ी विचलित जरूर हुई, लेकिन संभली और जीवन को पटरी पर लाने की जद्दोजहद करती रही।
गुरुग्राम के पालड़ी गांव में 28 सितम्बर 1994 को जन्मीं श्यामा राजपूत की शादी राजस्थान निवासी सुरेंद्र सिंह राघव के साथ 27 फरवरी 2009 को हुई थी। शादी के तीन साल बाद वर्ष 2012 में उनके घर बेटे ने जन्म दिया। श्यामा की देखरेख के लिए बेटे के जन्म के 15 दिन बाद उनका पति सुरेंद्र सिंह राघव अपनी बड़ी बहन को लेने के लिए गाड़ी से अहमदाबाद जा रहा था। अहमदाबाद के निकट पहुंचते ही एक अनियंत्रित वाहन से उनकी गाड़ी टकराई। इस हादसे में सुरेंद्र सिंह का निधन हो गया। जैसे ही यह खबर परिवार तक पहुंची तो परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट गया। श्यामा को ससुराल में ताने भी मिलते देर ना लगी। उसका दर्द समझकर श्यामा के मायके वाले उसे घर ले आए। श्यामा कहती हैं कि उन्हें दुखों से बाहर निकलकर आगे बढऩे में मां कैलाश देवी का अहम योगदान रहा है। भाई सूरज सिंह चौहान भी ढाल बनकर खड़ा रहता है।
श्यामा ने पहले तो बीएसएनएल में क्लर्क के रूप में नौकरी की। इसके बाद वह बिजली बोर्ड में भी लगी। फिर श्यामा ने गुरुग्राम रेडक्रॉस सोसायटी से फर्स्ट एड की कक्षा ली। अब श्यामा राजपूत रेडक्रॉस सोसायटी में ही काम करते हुए समाज के लिए काम कर रही है। श्यामा का बेटा उनकी मां यानी अपनी नानी के पास रहता है। श्यामा कहती हैं कि यह सच है कि पति का साया उनके सिर से उठ गया है, लेकिन वह आज भी एक सुहागिन महिला की तरह श्रृंगार करती है। उनका मानना है कि औरत के श्रृंगार को मर्यादाओं में नहीं बांधना चाहिए। श्यामा ने कामकाजी महिला छात्रावास की वार्डन सिंगल पेरैंट कविता सरकार को श्यामा ने अपनी प्रेरणा स्रोत बनाया है।