सुरेंद्र सिंह भाटी@बुलंदशहर जहांगीराबाद। नगर में उस मैदान पर अपनी झुग्गी झोपड़ी डाल ढोल बनाकर अपने परिवार का जीवन ज्ञापन करते कारीगर, बोले नहीं मिलता कोई सरकारी लाभ। यूं तो कहा जाता है कि पहलवान ने ढोल को अपना गुरु माना और एकलव्य की भाँति हमेशा उसी की आज्ञा का अनुकरण करता रहा। ढोल का महत्व शादी विवाह कार्यक्रम में भी अत्यंत उपयोगी माना जाता है।
पूर्व के समय जब कोई सूचना प्रसारण करनी होती थी तब भी ढोल का महत्व होता था। परंतु ढोल को बनाने वाले कारीगरों से उनकी आपबीती सुने तो मन को बड़ा ही कष्ट होता है। ढोल बनाने वाले कारीगर अरमान अली ने बताया कि एक धूल को बनाने में काफी समय लगता है। जब हम इसमें मुनाफे की बात करते हैं तो केवल नाम मात्र होता है। सरकारी सुविधाएं भी हमसे बहुत दूर होती हैं। कोई भी सरकारी लाभ कि योजना हम तक नहीं पहुंच पाती हें।