सुरेन्द्र सिंह भाटी@बुलंदशहर। उत्तर प्रदेश संविधान की अनुसूचित जाति की सूची में क्रम सं. 18 बेलदार, क्रम स. 36 में गोड, क्रम सं. 03 मे मझवार, क्रम सं. 60 में तुरेहा पर सूचीबद्ध पर्यायवाची जातियां माझीकार, कश्यप, केवट, मल्लाह, रैकवार, धीवर, बिन्द, धीमर, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी मधुवा, गोड, राजगोल को जेनेरिक नाम के रूप में परिभाषित किया गया है। प्रमाणपत्र जारी किए जाने के संबध मे अवगत कराते हुए यह भी लिखा है कि सेंसस मैनुअल पार्ट फर्सट फॉर उत्तरप्रदेश में अनुसूचित जातियों के पर्यायवाची एवं जेनेरिक नाम दिए गए हैं।
इसी मैनुअल के ‘ऐपेन्डिक्स एफ के अंतर्गत अंकित अनुसूचित जातियों की सूची के क्रमांक के सामने मझवार को माझी के मल्लाह गोड, राजगौड़ को मझवार को पर्यायवाची एवं जनेरिक (राज) के रूप में मझवार दर्शाया एवं परिभाषित किया गया है। देश की आजादी के बाद से आज तक शासन की दृष्टि में उपरोक्त पर्यायवाची जातियां संवैधानिक रूप से मझवार है। यह विधिक रूप से सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि माझी, केवट, मल्लाह परस्पर पर्यायवाची एवं समानार्थी शब्द है।
सेंसेस मैनुअल पार्ट फर्स्ट उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जातियों के पर्यायवाची एवं जेनेरिक नाम का आधार मानकर क्रमांक 04 पर रघुवंशी ठाकुर को बहेलिया का, क्रमांक 11 पर मेहतर जमादार को बाल्मीकि का जाति प्रमाण पत्र, क्रमांक 24 पर अंकित मोची, रेवास, उत्तरा, देखिनहा, रविदास, रैदास आदि को चमार का प्रमाण पत्र, क्रमांक 50 पर पथरकट को दबगर का, क्रमांक 30 पर रजक, कनोजिया को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र आसानी से निर्गत हो रहा है।
जबकि इसी मैनुअल ऐपेन्डिक्स एफ” के अंतर्गत अंकित अनुसूचित जातियों की सूची के क्रमांक 51 के मडावार को माझी, केवट, लागढ़, राजगोड़ को मझवार का पर्यायवाची एवं जैनेरिक (वंश के रूप में मझवार दर्शाया एवं परिभाषित किया गया है। निर्देशक हरिजन तथा समाज कल्याण विभाग उत्तर प्रदेश के पत्र संख्या 5217/33 74/23 जनजाति दिनांक 18.03.1975 के द्वारा पूरे उत्तर प्रदेश के मझवार जाति को अनुसूचित जाति माना गया है और यह पूरे प्रदेश में निवास करती है।
वर्तमान समय में निषाद समाज समुदाय उत्तर प्रदेश की आरक्षण व्यवस्था में कहीं नहीं रह गया है, जिस कारण मछुआ समुदाय संवैधानिक अधिकारी एवं संरक्षण से वंचित होने के कारण विकास की मुख्यधारा से पिछड़ गया है। सूबे का 10 प्रतिशत मछुआ वोटर एक तरफा सरकार बनाने की कूवत रखता है। जिस प्रकार बसपा ने मछुआरों के हक पर डाका डालने का काम किया तो निषाद समाज ने बसपा का बटन छूना बंद कर दिया और आज बसपा की हालत क्या है।
सभी को पता है कि सपा-कांग्रेस ने मछुआरों को उनका हक नहीं दिया तो उनके बटन को दरकिनार कर सपा-कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील ठोकने का काम किया है। ठीक उसी प्रकार अगर भाजपा भी वादाखिलाफी करती है तो भाजपा का भी बटन बंद कर दिया जायेगा।
निषाद पार्टी की प्रमुख मांगे- 1. संविधान में सूचीबद्ध मझवार गोठा खरवार बेलदार, खरोट कोली का अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र यथाशीघ्र जारी किया जाय। 2. राष्ट्रपति के 1901 के आदेशानुसार मछुआरों को उपरोक्त प्रजातियों में 2021 की जनगणना में गिना जाय। 3. उपरोक्त सभी समूहों की पर्यायवाची जातियों की रेणुका आयोग के रिपोर्ट के अनुसार विमुक्ति जनजाति को सभी सुविधाएं दी जायें।
4. ताल, घाट, नदी पूर्व की भांति निषाद व मछुआ समुदाय को दिया जाय। 5. नदियों के किनारे खाली पड़ी के नये मौरंग बालू को भी मछुआ समुदाय को आरक्षित किया जाए। 6. मतस्य मंत्रालय के सभी योजनाओं का लाभ परंपरागत गरीब मछुआरों को दिया जाय। पंचायतनाव से पहले बसपा द्वारा लिए गए मझवार आरक्षण जो संविधान की सूची में सूचीबद्ध है के रोक को सरकार हाईकोर्ट में पक्ष में प्रमाणित दस्तावेज प्रस्तुत कर हटाया जाए साथ ही हमारा आरक्षण लागू किया जाये।
7. मत्स्य मंत्रालय द्वारा जारी बीमा योजना को ग्रामसभा में आयोजित कर मछुआ समुदाय का करवाया जाय। 8 मत्स्य मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइन क्षेत्रीय भाषाओं में लिखवाकर मछुआ समुदाय में लगाया जाये। 9. आधुनिक शिक्षण प्रशिक्षण हेतु गांव के गरीब मछुवारों को प्रोत्साहन राशि दिया जाय। 10. सरकार द्वारा दी जानेवाली अनुदान सहायता राशि बिना गारंटी के प्रदान किया जाये। 11. दक्षिणी भारत जैसे उत्तर प्रदेश के मछुआरों को भी सुविधा दी जाए। 12. मत्स्य मंत्रालय के विभागों को खोला जाये।
13. निजी एवम् सरकारी विद्यालयों में मछुआ समुदाय के बच्चों का सौट आरक्षित कर पढ़ाई लिखाई के साथ अन्य सुविधा भी निशुल्क किया जाये। 14. जनसंख्या के आधार पर सभी क्षेत्रों में मछुआ समुदाय के सभी जातियों तथा उपजातियों के लिए सीट आरक्षित किए जाय। 15. प्रयागराज में श्री रामचंद्रजी की मूर्ति तथा राम के बड़े भाई निषादराज की मूर्ति अयोध्या में श्री रामचंद्र की मूर्ति के बराबर लगाया जाय। 16. मछुआ समुदाय के सभी महापुरुषों का जीवन वृतात विस्तार से पाठयक्रमों में शामिल किया जाये और उनके गौरवशाली इतिहास को पुनर्जिवित किया जाये।