उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के गंगा मां के आंचल में बसे एक छोटे से गांव फरीदा बांगर में एक दौलत नाम का बच्चा रहता था । उसकी उम्र महज सात-आठ साल की रही होगी । अब बच्चे तो बच्चे ही होते हैं उनको जैसा सिखाया या बताया जाता है वह वैसा ही सीख जाते हैं ।
बच्चों को यही बताया जाता है कि कछुआ का ऊपर वाला हिस्सा बहुत ही मजबूत होता है उस पर कितना भी वजन क्यों न डाल लें वह मरता नहीं है । यही बात उस दौलत नाम के बच्चे के दिमाग में घर कर गई थी । गांव फरीदा बांगर गंगा जी के किनारे बसा होने के कारण वहा के निवासी गंगा जी जब अपनी जमीन छोड़ती हैं तो उस जगह में सब्जी की खेती की जाती है , जैसे लौकी,टमाटर,कासीफल,करेला,खरबूज,तरबूज और भी कई फसलें गंगा की रेती में उगाई जाती हैं । एक बार की बात है की वह दौलत नाम का लड़का अपने खेत पर गया । उस लड़के के खेत गंगाजी के किनारे पर थे।
दौलत को कहीं से एक कछुए का छोटा बच्चा मिल गया। दौलत के दिमाग में यही बात चल रही थी कि कछुआ बहुत मजबूत होता है चाहे इसके ऊपर कितना भी वजन क्यों न डाल लो वह मरता नहीं है । दौलत यह बात सोच ही रहा था कि दूसरी तरफ से सब्जी से भरी हुई एक भैंसा-बुग्गी(गाड़ी) आ रही थी। अब दौलत ने उस कछुए के बच्चे को उस भैंसा-बुग्गी के नीचे रख दिया। कछुए का बच्चा एक-दो बार भैंसा-बुग्गी के पहिए से इधर -उधर हो कर बच गया लेकिन दौलत के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था उसने कछुए के बच्चे को पकड़ कर फिर से भैंसा-बुग्गी के पहिए के नीचे दे दिया और जब तक भैंसा-बुग्गी का पहिया उसके ऊपर से नहीं उतर गया उस लड़के ने कछुए के बच्चे को नहीं छोड़ा ।
अब वह तो कछुए का बच्चा था तो उसका ऊपरी हिस्सा भैंसा-बुग्गी का वजन सहन नहीं कर पाया और उसकी कुचलकर मौत हो गई । अब दौलत बहुत पछता रहा था और मन ही मन अपने आपको कोश रहा था की मैंने एक कछुए के बच्चे की जान ले ली। आज वह दौलत नाम का लड़का बड़ा हो गया है लेकिन आज भी वह उस दृश्य को भुला नहीं पा रहा है जब उस कछुए के बच्चे की जान गई थी।
भरत कुमार निषाद