योगी सरकार की सरकारी मशीनरी की मनमानी से 400 परिवार बेघर होने को मजबूर


-सरकारी दस्तावेज गायब कर आवासीय भूमि को कर दिया बंजर घोषित
-पीडि़तों ने मुख्यमंत्री से लगाई न्याय की गुहार, जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्यवाही की मांग

गाजियाबाद। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के नेतृत्व में प्रदेश तेजी से आगे बढ़ रहा है। अपराधों पर नियंत्रण है। अपराधी खौफजदा हैं। योगी के मंत्रियों के कामकाज की भी समीक्षा हो रही है, जिसके चलते प्रदेश की बदहाली दूर हो रही है। सरकार ने नौकरशाही और पुलिस की लगाम कस रखी गई है। बार-बार योगी सरकार इस तरह के दावे करती रहती है। फिर भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपने अधिकारियों को यह नसीहत देनी पड़ती है कि जनता की समस्याएं न सुनना अब अधिकारियों को भारी पड़ेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गत दिनों अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए कि आम लोगों की समस्याओं के निस्तारण पर पूरा जोर दिया जाए। ऐसे अधिकारी जो जनता की समस्याएं नहीं सुनेंगे और बेवजह उन्हें कार्यालयों के चक्कर लगवाएंगे तो उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। ऐसे में यह समझना मुश्किल है कि प्रदेश के विकास की हकीकत क्या है? क्यों दूरदराज की जनता को अपनी समस्याओं के लिए मुख्यमंत्री की चौखट पर जाना पड़ रहा है या फिर उन्हें पत्र लिखकर न्याय मांगा जा रहा है। क्या जनता जिले के जनता को प्रशासनिक अधिकारियों के कार्यों पर विश्वास नही रहा हैं। जिस समस्या का समाधान जिले स्तर पर होना चाहिए, उस समस्या के निस्तारण के लिए लोगों को मुख्यमंत्री को बार-बार पत्र लिखना पड़ रहा है। यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो कहीं न कहीं प्रदेश का प्रशासनिक ढांचा पूरी तरह से चरमराया हुआ है।

ऐसे ही एक मामला गाजियाबाद में देखने को मिला है। जहां प्रशासनिक अधिकारी ने आवासीय भूमि को बंजर घोषित कर दिया। सरकारी रिकॉर्ड को गायब कर उक्त जमीन को षडयंत्र तरीके से बंजर घोषित कर दिया। प्रशासनिक अधिकारियों की इस लापरवाही का खामियाजा आज 400 परिवार भुगतने को विवश है। सद्भावनानगर डासना निवासी के एक व्यक्ति ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगाई है। आरोप है कि हाल ही में हुए चुनाव के दौरान वर्तमान डासना के चेयरमैन का विरोध करना चाहा। उसी विरोध के कारण बसपा पार्टी के नेता जो खसरा नंबर-2302 डासना में पिछले करीब 45 वर्षो से रह रहा था, उसे अब बेघर किया जा रहा है। यह खसरा नम्बर 2302 चकबन्दी से पूर्व 2590 होता था। वर्ष 1950 से लेकर वर्तमान तक यह खसरा 2302 आवासीय एवं कृषि भूमि रहा है। इस भूमि का लेनदेन वर्ष 1950 से लेकर वर्तमान तक सरकार द्वारा निर्धारित रजिस्ट्री के नियमों द्वारा हुआ है। समय-समय पर सरकार के अभिलेखों में दाखिल खारिज भी दर्ज हुआ है। वर्ष 22 जनवरी 1962 में डिप्टी कमिश्नर मेरठ द्वारा भूमिधर के पक्ष में आदेश सुनाया। आदेश के आधार पर भूमिघर का नाम भूमि अभिलेखों में दर्ज किया गया।

उस समय यह भूमि कृषि भूमि थी। समय-समय पर सरकार द्वारा निर्धारित लगान का भुगतान किया गया था। अप्रैल-2022 में एक फर्जी व्यक्ति इन्द्रजीत केसरवानी द्वारा लिखित शिकायत दी गई उसमें सरकारी रिकार्ड गायब करने की सूचना भी दर्ज की गई। शिकायत पर वर्तमान पटवारी द्वारा रिपोर्ट लगाकर समस्त भूमि को सरकारी बंजर भूमि घोषित कर दिया गया। जिसके बाद करीब 400 लोगों को अपने घरों से बेदखल करने का नोटिस जारी कर दिया गया। एसडीएम सदर द्वारा अपने आदेश में सरकारी रिकार्ड गायब होने का वर्णन किया गया है। साथ ही गोशेरा के फाई0 नंंबर-7981 3 नंबवर 1955 का आदेश भी कलेक्टर के रिकार्ड से गायब किया गया। सरकारी रिकॉर्ड सद्भावनानगर डासना के पीडि़तों ने मुख्य मंत्री को पत्र लिखकर सरकारी रिकार्ड उपलब्ध कराने की गुहार लगाई है। जो सरकारी अधिकारी इस कृत्य में संलिप्त हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की भी मांग की गई।