सुरेन्द्र सिंह भाटी@बुलंदशहर गुरुवार को केशव माधव सरस्वती विद्या मंदिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय ककोड़ में वीर शिरोमणि मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप जी की जयंती का कार्यक्रम मनाया गया।कार्यक्रम के अध्यक्ष विद्यालय के आचार्य अवधेश कुमार मीणा एवं मुख्य वक्ता आचार्य संदीप सोलंकी रहे।
कार्यक्रम का संचालन आचार्या ममता शर्मा ने किया।कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन एवं पुष्पार्चन के साथ हुआ। कार्यक्रम में विद्यालय के भैया व बहनों ने महाराणा प्रताप के जीवन पर प्रकाश डाला तथा त्याग और बलिदान की गाथाओं का वर्णन किया।
मुख्य वक्ता आचार्य ने बताया कि मातृभूमि के लिए अपना सबकुछ समर्पित करने वाले मेवाड़ के महान राजपूत नरेश महाराणा प्रताप अपने पराक्रम और शौर्य के लिए पुरी दुनिया में मिसाल के तौर पर जाने जाने जाते है| इनका जन्म 9 मई 1540 ई को राजस्थान के कुंभलगढ दुर्ग मे हुआ था|
इनके पिता महाराजा उदयसिंह थे| इनको 1572 में मेवाड़ का शासक बनाया गया| ये एक ऐसे राजपूत सम्राट थे जिन्होंने जंगलों में रहना पसंद किया लेकिन कभी विदेशी मुगलों की दासता स्वीकार नहीं की| मेवाड़ को सुरक्षित रखने के लिए उन्होने कई युद्ध लड़े और जीते| महाराणा प्रताप के काल में दिल्ली में मुगल सम्राट अकबर का शासन था| जो भारत के सभी राजा -महाराजाओ को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्यो की स्थापना कर इस्लामिक परचम को सम्पूर्ण हिन्दुस्तान में फहराना चाहता था| उन्होने मुगल बादशाह अकबर के खिलाफ हल्दीघाटी का युद्ध 1576 में लड़ा| उनके सबसे प्रिय घोडे़ का नाम चेतक था|
जो बडी़ बडी़ नदियों और पहाडो़ को छलांग लगा देता था| 30 वर्षों के लगातार प्रयास के बावजूद अकबर महाराणा प्रताप को बंदी ना बना सका| उदयपुर के सिटी पैलेस में महाराणा प्रताप से जुडी़ कई चीजों को सभागर में रखा गया है |
महारणा प्रताप 19 जनवरी 1597 को चावंड में स्वर्ग सिधार गये।आचार्य अवधेश कुमार मीणा ने बताया कि महाराणा प्रताप दृढ़ निश्चयी होने के कारण अपने कर्तव्य पथ पर अडिग रहते थे। विद्यालय के अध्यक्ष अशोक गुप्ता,प्रबंधक जगदीश प्रसाद ढौड़ियाल एवं विद्यालय के प्रधानाचार्य मनोज कुमार मिश्र ने इन महापुरुषों से देशभक्ति की प्रेरणा लेकर देशहित में त्याग और बलिदान की सलाह दी।आज के इस मोके पर विद्यालय के समस्त आचार्या बहनें, आचार्य बंधु एवं समस्त लोग उपस्थित रहे।