गाजियाबाद। अवैध कॉलोनी काटने और अवैध निर्माण करने का सिलसिला लगातार जारी है। पहले तो लोग अवैध रूप से कॉलोनी काटते हैं या निर्माण करते हैं। यदि गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) की नजर न पड़े तो बल्ले-बल्ले और यदि पड़ जाए तो ले देकर मामले को रफा दफा कर लेते है। अगर जीडीए अधिकारी समय रहते ही अवैध निर्माण पर अपनी कार्रवाई कर दें तो शायद ही कोई अवैध निर्माण कार्य हो सकें। लेकिन अगर कार्रवाई हो ही जाएगी तो कमाई कैसे होगी। जीडीए उपाध्यक्ष अतुल अवैध कॉलोनियों और अवैध निर्माणों पर टेढ़ी नजर बनाए हुए है। जीडीए उपाध्यक्ष की सख्ती के चलते ही पिछले कुछ समय से अवैध कॉलोनियों में हुए निर्माण पर सीलिंग की कार्रवाई की गई और चेतावनी बोर्ड भी लगाए गए। जिसका असर यह था कि अधिकारी से लेकर कर्मचारियों में जीडीए उपाध्यक्ष का खौफ दिखाई दे रहा है। जीडीए उपाध्यक्ष ने सबसे पहले जीडीए अधिकारियों एवं कर्मचारियों को काम करने का सलीका सिखाया। लेकिन जीडीए उपाध्यक्ष की सख्ती का असर कुछ अधिकारियों पर दिखाई नहीं दे रहा है।
कुछ समय पहले जीडीए ने गोविंदपुरम स्थित बालाजी एंकलेव में रोड़ पर हो रहे करीब 250 गज के निर्माण कार्य पर रोक लगाते हुए सीलिंग की कार्रवाई कर दी। मगर वहीं दूसरी ओर प्राधिकरण के अधिकारी कुछ अवैध कॉलोनियों पर मेहरबान हैं, जिन पर कार्रवाई करने की बजाय उनको संरक्षण दिया जा रहा है। जीडीए उपाध्यक्ष की सख्ती का असर अधिकारियों पर बेअसर साबित होता नजर आ रहा है। या फिर यूं कहा जाए कि उन्हें इन सबसे बेखबर रखा जा रहा है। क्योंकि जब अधिकारियों ने गोविंदपुरम स्थित बालाजी एंकलेव में अपनी सीलिंग की कार्रवाई की तो उससे कुछ दूरी पर खुलेआम हो रहे अवैध निर्माण को रोकने की जहमत तक नहीं की। गोविंदपुरम स्थित बालाजी एंकलेव में एक समय था कि जब भी कोई निर्माण होता तो जीडीए की टीम कार्रवाई करने पहुंच जाती थी और सीलिंग की कार्रवाई कर देती है। मगर सीलिंग की कार्रवाई के बाद आज भी अगर बालाजी एंकलेव पर नजर डाली जाए तो सैकड़ों अवैध निर्माण बनकर तैयार हो चुके है। जिसमें कुछ पूर्व अधिकारियों की मेहरबानी रही थी। लेकिन आज भी वहीं हाल दिखाई दे रहा है। अधिकारी तो बदल गए, काम आज भी वहीं होता नजर आ रहा है। ऐसा लग रहा है बिल्डरों के आगे अधिकारी नतमस्तक दिखाई दे रहे हैं।
सूत्रों का कहना है कि बालाजी एंकलेव में जीडीए की टीम अपनी नजर बनाए हुए है। लेकिन वह नजर सिर्फ उन पर ही है, जो चढ़ावा नहीं दे रहे है। चढ़ावा नहीं मिलने पर सीलिंग की कार्रवाई के बाद ध्वस्तीकरण की कार्रवाई हो जाती है। अगर कोई अवैध निर्माण की अधिकारी से शिकायत कर भी दें तो उसे ही उल्टा धमका दिया जाता है या फिर ले देकर मामले को वहीं शांत कर दिया जाता है। जीडीए के प्रवर्तन जोन-2, 3, 4, 7 व 8 जोन क्षेत्र में सबसे अधिक निर्माण हो रहे हैं। प्रवर्तन जोन-3 क्षेत्र में रईसपुर-सदरपुर मार्ग, मटियाला, मैनापुर, दुहाई, भिक्कनपुर, भोजपुर, मोदीनगर और मुरादनगर क्षेत्र में धड़ल्ले से अवैध निर्माण व अवैध कॉलोनी काटी जा रही हैं। जीडीए प्रवर्तन जोन-3 क्षेत्र के बालाजी एनक्लेव की गली नंबर-10 ई-55 के सामने अवैध निर्माण कार्य आज भी जारी है। उक्त स्थल पर मानचित्र से हटकर जो निर्माण किया गया है वो अवैध निर्माण की श्रेणी में प्राधिकरण ने भी माना है।
जिले में आचार संहिता का फायदा उठाकर बिल्डर ने ग्रांउड प्लस 4 का यह निर्माण महज दो माह में अधिकारियों की नाक के नीचे पूरा कर लिया। बचे हुए काम को छुट्टी के दिन किया जाता है। देखना यह है कि जीडीए अधिकारी इसमें क्या कार्रवाई करते है, या फिर दिखावे के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति ही होती रहेगी। सूत्रों के अनुसार, अवैध निर्माण का खेल जीडीए के अफसरों की मिलीभगत से ही होता है। क्योंकि हर निर्माण की जानकारी विभाग को होती है, लेकिन रुपये मिलने के कारण कोई कार्रवाई नहीं होती है। जानकारी के अनुसार हर इलाके में जोन के हिसाब से जेई और सुपरवाइजर तैनात हैं। सुपरवाइजरों को अलग-अलग इलाका दिया जाता है। वे अपने इलाके में होने वाले हर निर्माण की जानकारी इलाके के जेई को देते हैं, जेई मौके पर जाकर उसको चेक करते हैं यदि निर्माण नक्शे के हिसाब से हो रहा होता है तो कोई बात नहीं, पर यदि नक्शे के विपरीत कोई काम हो रहा होता है तो जेई काम बंद करा देता है। इसके बाद काम शुरू करने देने के नाम पर लेन-देन का खेल शुरू होता है।
प्रति लिंटर पर 1-2 लाख रुपये का होता है रेट
बिल्डिंग बनाने वाले कुछ लोगों के अनुसार नक्शे के विपरीत काम कराने के लिए संबंधित विभाग को रुपये देने पड़ते हैं। एक लिंटर पर 1-2 लाख रुपये तक की वसूली अफसर करते हैं। इसके अलावा यदि कोई बेसमेंट या स्टिल्ट पर दुकान आदि बनाना चाहता है तो उसके रेट डबल हो जाते हैं। नक्शे से अधिक बेसमेंट बनाने पर और अधिक रुपये देने होते हैं। इन सबमें सुपरवाइजर की फीस अलग होती है।
कागजों में चलती रहती है कार्रवाई
जानकारी के अनुसार कई इलाकों में अवैध निर्माण की शिकायत मिलने पर जीडीए के अधिकारी वहां जाते हैं, लेकिन रुपये मिलने पर कागजों में ही उसकी सीलिंग कर देते हैं। मौके पर कोई नोटिस नहीं भेजा जाता है, वहां काम चलता रहता है। वहीं इलाके में कुछ अवैध निर्माणों पर जानबूझकर कार्रवाई नहीं की जाती, ताकि ऊपर से दबाव पड़ने के बाद उन पर एक्शन लिया जा सके और दिखाया जा सके कि विभाग कार्रवाई कर रहा है।
जीडीए सचिव राजेश कुमार सिंह ने बताया कि अवैध निर्माण की शिकायत मिलने पर सीलिंग की कार्रवाई की जाती है। अगर अवैध निर्माण में किसी अधिकारी की मिलीभगत सामने आती है तो उसके खिलाफ भी एक्शन लिया जाता है। अगर ऐसा हो रहा है तो हमारी टीम इसे चेक कराएगी।