कोरोनाकाल के प्रकोप से बाल मजदूरी में देखने को मिल रहा इजाफा
भिक्षा वृत्ति कर पेट पालने वाले लोगों की संख्या में भी हुई बढ़ोत्तरी
दीपक वर्मा@ शामली। कोरोना के प्रकोप को शांत करने के लिए सरकार को लॉकडाउन जैसे सख्त फैसले लेने पड़े। इसके चलते जहां बेरोजगारी में बेहतहाशा वृद्धि हुई, वहीं स्कूली बच्चों की शिक्षा भी पिछले कई महीनों से प्रभावित है। सक्षम घरों के बच्चों को आॅनलाइन क्लास के सपनें दिखाकर स्कूल संचालक भी मनमानी वसूली कर रहे हैं, लेकिन मजदूरी से घर का चूल्हा जलाने वाले परिवारों के बच्चों के लिए आॅनलाइन क्लासेज बेमानी लग रही है। ऐसे परिवारों के बच्चे अब घरों में पेट भर रोटियों की किल्लत दूर करने के लिए बड़े बनकर बाहर निकल रहे हैं।
लॉकडाउन से टूटी गरीब परिवारों की कमर
कोरोना संक्रमण की दर कम रखने के लिए भारत में भी अन्य देशों की तर्ज पर लॉकडाउन लगाया गया। इस दौरान व्यापारिक गतिविधियां, कल-कारखाने बंद रहे। इससे देश करोड़ों लोगों को बेरोजगार होना पड़ा और उनके परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया। इतना ही नही सबसे बुरे हालत दैनिक मजदूरी कर चूल्हा जलाने वाले परिवारों को झेलने पड़ रहे हैं, जिनके सामने बेरोजगारी और भुखमरी जैसे हालात खड़े हैं। कोरोना संकट के बीच ऐसे परिवारों के बच्चे घरों से बाहर निकलते हुए परिवार को खड़ा करने की कोशिशों में जुट गए हैं।
सड़कों, फैक्ट्रियों और मजदूरों के बीच खड़े मासूम
लॉकडाउन के चलते सामने आई परिस्थितियों के कारण बाल मजदूरी में बढ़ोतरी हुई है। इसका अनुमान सड़कों पर गाडियों के शीशे साफ करते, छोटी-छोटी फैक्ट्रियों में काम करते और मजदूरों के बीच खड़े होकर आधी दिहाडी में काम करने के लिए तैयार बच्चों को देखकर लगाया जा सकता है। अकेले यूपी वेस्ट में बाल मजदूरी की दर में तेजी से इजाफा हुआ है। कुछ ऐसे ही हालातों की वजह से सड़कों पर भीख मांगने वालों की तादात भी बढ़ती नजर आ रही है।
सरकारी स्कूलों के बच्चों का क्या?
प्राईवेट स्कूल संचालक बच्चों को आॅनलाइन क्लास के जरिए अभिभावकों की जेबें खाली करने पर तुले हुए हैं, जबकि लॉकडाउन शुरू होने के बाद से अब तक स्कूल बच्चों के लिए पूरी तरह से बंद हैं। इसके बावजूद भी आॅनलाइन क्लास के बूते पर अभिभावकों से लॉकडाउन अवधि, नये एडमिशन और अन्य शुल्क लगाकर पूरी फीस वसूल की जा रही है। सरकारी स्कूलों में भी इसी की तर्ज पर आॅनलाइन क्लासेज शुरू की गई है, लेकिन यहां पढ़ने वाले सभी बच्चों के घरों में फोन और इंटरनेट की सुविधा है, या नही…इस पर किसी का ध्यान नही है।
मजदूरी मांगने वाले बच्चों को दे सहारा
बड़े होकर पुलिस अफसर, अधिकारी, सैनिक, डॉक्टर और इंजीनियर बनने के सपने देखने वाले मासूम आज घर को खड़ा रखने के लिए बाल मजदूरी की कुप्रथा के आगे घुटने टेकने को मजबूर हैं. अधिकांश बच्चे ऐसे नजर आते हैं, जो भीख मांगने के बजाय, मजदूरी कर अपने घर में रोटियों का जुगाड़ करने के लिए घरों से बाहर निकले हैं। फिलहाल, सक्षम लोगों को ऐसे मासूम बच्चों के सपनों को तोड़ने और प्रताडित करने के बजाय सहारा देते हुए बेहतर समझाईश देने की जरूरत है।