अमीरों की बीमारी गरीबों में बांट गया लॉकडाउन, डिप्रेशन हुआ हावी

कोरोना नही बल्कि लॉकडाउन ने तोड़ी युवा, गरीब और मध्यमवर्गीय लोगों की कमर
किसी की नौकरी, तो किसी का लोन…अब खुद को खड़ा रखने की चुनौती सब पर हावी


दीपक वर्मा@ शामली। चीन से फैली कोरोना महामारी को यदि तबाही का वायरस कहा जाए, तो यह बिल्कुल भी गलत नही होगा, क्योंकि इस वैश्विक महामारी के डर से लागू किया गया |लॉकडाउन युवाओं समेत गरीब और मध्यमवर्गीय लोगों की रीढ़ तोड़ गया है। देश अनलॉक में सफर कर रहा है, लेकिन महामारी के बाद भारी संख्या में लोग डिप्रेशन जैसे मनोवैज्ञानिक रोगों का सामना कर रहे हैं।

आपके आस-पास भी ऐसे कई लोग हो सकते हैं, जो महामारी के बाद मानसिक रूप से डिप्रेशन में चले गए हैं। अकेले शामली जिले में ऐसे रोगियों की तादात में बेतहाशा वृद्धि होने के संकेत मिल रहे हैं। कहते हैं कि डिप्रेशन ऐसी बीमारी है, जो यदि गरीब को हो, तो उसका पता गरीब की मौत के बाद और यदि अमीर को हो, तो पहले ही लग जाता है। आम तौर पर इस बीमारी को मानसिक रोग से जोड़कर देखा जाता है, जिसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन वर्तमान के हालातों में लोगों में तेजी से फैल रही इस बीमारी का मुख्य कारण वैश्विक महामारी के डर से लागू किया गया लॉकडाउन साबित हो रहा है। लॉकडाउन के चलते युवाओं के सामने नौकरी, गरीबों के सामने रोजी-रोटी और मध्यमवर्गीय लोगों के सामने खुद को खड़ा रख पाना ही चुनौती बन गया है। ऐसे में लोग मानसिक तनाव या फिर अंग्रेजी में बोलें तो डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। कोरोना व लॉकडाउन के कारण लोगों में चिढ़चिढ़ापन, दशहत, घबराहट, नींद पूरी न होना और नुकसान का दोष और कारण खुद को मानना जैसे लक्षणों में इजाफा हुआ है, क्योंकि आम इंसान की आजीविका ठहर गई है। किसी को नौकरी खोने का गम है, तो किसी को लोन का। कोई काम ठप्प होने से कर्ज के बोझ में दब गया है, तो कोई पुराने कर्ज को भी चुकाने में सक्षम नही है, क्योंकि लॉकडाउन के चलते सभी की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई है।

घर में बैठ गए विदेशों से आए युवा
देखने में आ रहा है कि ऐसे युवा जो अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद कैरियर बनाने की कोशिशों में जुटे हुए थे, उनमें लॉकडाउन के बाद डिप्रेशन के हालात बढ़े हैं। परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन करने वाले युवा भी पढ़ाई बाधित होने के चलते तनाव से जूझ रहे हैं। शामली जिले में ऐसे युवाओं को भी बड़ी तादात है, जो विदेशों में नौकरी कर अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे थे, लेकिन लॉकडाउन शुरू होने के बाद वें सभी अब फिलहाल अपने घरों पर बैठे हुए हैं।

महिलाओं में भी बढ़ रहा तनाव
कोरोना के चलते लागू किए गए लॉकडाउन से घरेलू महिलाएं भी अधिक प्रभावित हुई है, क्योंकि पैसा खर्च करने की पाबंदियों के साथ-साथ घर की जरूरतों को पूरा करना भी किसी जोखिम से कम नही होता। ऐसे में यह समय भी महिलाओं के लिए किसी चुनौती से कम नही रहा है। इन सबके अलावा कोरोना महामारी की चपेट में आने और परिवार को उससे बचाते हुए आर्थिक गतिविधियां जारी रखना भी लोगों के लिए अग्निपरीक्षा साबित हो रहा है।

मनोचिकित्सक ही नही…?
डिप्रेशन को अमीरों की बीमारी इसलिए भी कहा जाता है, क्योंकि गरीब लोग अक्सर इस बीमारी को बीमारी ही नही मानते। ऐसे में मनोचिकित्सक की सेवाएं बड़े शहरों में ही मौजूद रहती है। यदि शामली जिले की बात की जाए, तो यहां पर ऐसी स्वास्थ्य सेवाएं निल के बराबर है। सरकारी स्वास्थ्य महकमें में भी ऐसे चिकित्सक की तैनाती ढ़ूढने के बाद भी नही मिलती। इसके चलते ऐसे मरीजों को डॉक्टर आम बीमारियों की गोलियां पिलाकर उनका दर्द कम करने की कोशिशें करते हैं।