-लोक निर्माण विभाग और ठेकेदार प्रतीक इंटरप्राइजेज की गठजोड़ ने विकास को कर दिया शर्मसार, सड़क की जगह बना दी मौत का रास्ता
गौतमबुद्ध नगर। गौतमबुद्ध नगर का चिपियाना गांव आज एक ऐसे सरकारी अपराध का शिकार बना हुआ है, जिसमें न बंदूकें चलीं, न डकैती हुई, मगर लूट उतनी ही साफ, संगठित और घातक रही। गांव की मुख्य सड़क, जो कभी गांव के विकास की राह बननी थी, अब खुद एक सवाल बनकर खड़ी है। ढाई साल पहले लाखों रुपये के सरकारी खर्च से बनी यह सड़क अब बर्बादी की ऐसी तस्वीर पेश कर रही है, जिसे देखकर लगता है जैसे सिस्टम ने खुद अपने हाथों जनता का विश्वास दफन कर दिया हो। इस पूरे मामले की जड़ में लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) और प्रतीक इंटरप्राइजेज नाम की ठेकेदार कंपनी है। दोनों ने मिलकर ऐसा खेल रचा कि कागजों में सड़क बनी, देखरेख हुई, भुगतान भी हो गया, लेकिन जमीन पर सड़क छह महीने भी नहीं टिक पाई। प्रतीक इंटरप्राइजेज को सड़क निर्माण का ठेका दिया गया, जो पहले से ही गाजियाबाद नगर निगम की ब्लैकलिस्ट में दर्ज थी। इसके बावजूद विभाग ने आंख मूंदकर कंपनी को काम सौंपा और काम पूरा होने के नाम पर लाखों रुपये ट्रांसफर कर दिए।
लेकिन यह सिर्फ भ्रष्टाचार की कहानी नहीं है, यह सिस्टम की बेशर्मी का ऐसा उदाहरण है, जिसमें जनता की जान की कोई कीमत नहीं बची। सड़क पर गड्ढे इतने गहरे हैं कि आए दिन वाहन पलटते हैं, लोग घायल होते हैं, बच्चों की स्कूल बसें इस जानलेवा रास्ते से गुजरती हैं। यह सड़क न सिर्फ लालकुंआ और ग्रेटर नोएडा जैसे बड़े क्षेत्रों को जोड़ती है, बल्कि उसी सरकारी लापरवाही को भी जोड़ती है जो हर जिले, हर गांव में विकास के नाम पर सिर्फ लूट करती है। यह सड़क जाट चौक से गांव के प्राइमरी स्कूल तक बनाई गई थी। निर्माण कार्य का ठेका प्रतीक इंटरप्राइजेज नामक निजी कंपनी को दिया गया था। कंपनी ने सड़क बनाई, पीडब्ल्यूडी ने भुगतान कर दिया, लेकिन उसके बाद जो होना था वह हुआ नहीं देखरेख और गुणवत्ता की जांच। सड़क बनने के कुछ ही महीनों के भीतर उखडऩे लगी और आज हालात ऐसे हैं कि कोई भी वाहन उस पर सुरक्षित नहीं गुजर सकता। गांव के लोग बताते हैं कि नई गाड़ी भी इस सड़क पर चलकर दो महीने में कबाड़ बन जाती है। घूसखोरी की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि काम करने वाले वही हैं जो ‘कमीशन’ देना जानते हैं। प्रतीक इंटरप्राइजेज को दिए गए टेंडर पर भी सवाल उठते हैं, क्योंकि कुछ समय पहले गाजियाबाद नगर निगम ने इस कंपनी को ब्लैकलिस्ट किया है। इस कंपनी को काम दिया गया और करोड़ों रुपये की सड़क महज महीनों में कचरे में तब्दील हो गई। जब ग्रामीणों ने शिकायत की, तो गड्ढों में मिट्टी और रोड़ी भर दी गई।

दिखावे के लिए मरम्मत का बहाना बना, मगर सच्चाई ये है कि नाली और पानी की निकासी की कोई योजना ही नहीं बनाई गई थी। बिना जल निकासी के बनाई गई यह सड़क छह महीने में टूट गई और ढाई साल में अब किसी कब्रगाह की तरह नजर आती है। इस पूरे मामले में जब सहायक अभियंता डीके शर्मा से सवाल पूछा गया, तो उन्होंने संवाद से ही बचने की कोशिश की। फोन उठाना तक जरूरी नहीं समझा गया। इससे साफ है कि विभाग जवाबदेही से नहीं, बचाव की रणनीति से काम कर रहा है। पीडब्ल्यूडी का रवैया यही दिखाता है कि कैसे एक सरकारी तंत्र जनता की आवाज को नजरअंदाज करता है और अपने भ्रष्ट खेल को ढंकने में लगा रहता है। गांववालों का दर्द सिर्फ गड्ढों में नहीं, सिस्टम की उन दीवारों में भी दर्ज है जहां हर ईंट रिश्वत से जुड़ी होती है। प्रतीक इंटरप्राइजेज जैसी कंपनियां सिर्फ नाम नहीं, बल्कि उस मुनाफाखोर सोच की पहचान हैं जो सड़क की गुणवत्ता की जगह कमीशन को प्राथमिकता देती हैं।

गांव के लोगों का कहना है कि जब तक ऐसे ठेकेदारों को सरकारी छत्रछाया मिलती रहेगी, तब तक न सड़क टिकेगी, न विश्वास। और जब तक पीडब्ल्यूडी जैसे विभाग भ्रष्टाचार में डूबे रहेंगे, तब तक जनता की सुरक्षा सिर्फ एक मजाक बनी रहेगी। बड़ा सवाल ये है कि आखिर बिना ड्रेनेज सिस्टम के सड़क निर्माण की अनुमति किसने दी? पानी की निकासी की व्यवस्था किए बिना सड़क बनाना अपने आप में लापरवाही नहीं, बल्कि एक सुनियोजित भ्रष्टाचार की मिसाल है। सड़क की उम्र छह महीने भी नहीं रही, लेकिन कागज़ों में देखरेख के नाम पर हर बार भुगतान होता रहा। विभागीय अधिकारियों के लिए यह सड़क सिर्फ एक टेंडर भर है, मगर गांववालों के लिए यह हर दिन की पीड़ा, जोखिम और नुकसान का कारण बन चुकी है। अब वक्त आ गया है कि इस लापरवाही और मिलीभगत के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। प्रतीक इंटरप्राइजेज के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज हो, और पीडब्ल्यूडी के संबंधित अधिकारियों की संपत्ति की जांच हो। अगर सरकार वाकई पारदर्शिता की बात करती है, तो उसे इस प्रकरण को उदाहरण बनाकर दोषियों पर कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए। वरना चिपियाना की सड़कें कल किसी की जान ले लेंगी, और सिस्टम एक बार फिर अपनी आंखें मूंद लेगा। यह सिर्फ चिपियाना गांव की पुकार नहीं है, यह पूरे प्रदेश के उन लोगों की आवाज है जो हर दिन इसी भ्रष्ट व्यवस्था के गड्ढों में उतरकर जीने को मजबूर हैं। अब सवाल यह नहीं है कि सड़क कब बनेगी सवाल यह है कि क्या सिस्टम के कार्यों में सुधार कैसे आएगा।
विकास नहीं, कमीशन का चल रहा है सिस्टम
गांववालों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि विकास कार्य केवल कागजों पर पूरे किए जाते हैं। असल में तो ठेकेदारी और अफसरशाही के गठजोड़ में सिर्फ रिश्वतखोरी का खेल चलता है। जब तक ये बंद नहीं होगा, जनता को बर्बादी ही नसीब होगी।
घूस की गारंटी, काम की कोई क्वालिटी नहीं
स्थानीय लोगों का आरोप है कि विभाग सिर्फ उन्हीं को टेंडर देता है जो ‘कमिश्न’ देने में माहिर हों। प्रतीक इंटरप्राइजेज को ठेका देना और बाद में उसका नगर निगम द्वारा ब्लैकलिस्ट होना यही दिखाता है कि भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं।
जिम्मेदारी की दौड़ में सब मौन, सिस्टम की चुप्पी से पस्त जनता
जब ग्रामीणों ने पीडब्ल्यूडी के सहायक अभियंता डीके शर्मा से संपर्क करने की कोशिश की, तो उन्होंने फोन उठाना भी ज़रूरी नहीं समझा। यह सिस्टम की संवेदनहीनता और जवाबदेही की कमी का जीता-जागता सबूत है।
गड्ढों में भरते हैं पत्थर-मिट्टी, पर दर्द नहीं भरता कोई
जब शिकायत होती है तो विभाग दिखावे के लिए गड्ढों में मिट्टी या टूटे पत्थर डलवा देता है। इससे समस्या कम नहीं होती बल्कि और बिगड़ जाती है। यह सड़क अब दुर्घटनाओं की सीरीज़ बन चुकी है, मगर जिम्मेदारों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही।
कागजों पर चमकी सड़क, जमीनी हकीकत में धंसी जान
चिपियाना गांव की सड़क का निर्माण पीडब्ल्यूडी द्वारा प्रतीक इंटरप्राइजेज को ठेका देकर कराया गया था। सड़क बनी, पेमेंट हो गया, मगर सड़क की उम्र 6 महीने भी नहीं रही। आज सड़क पर गड्ढे ही गड्ढे हैं इतने गहरे कि हादसे किसी भी दिन जान ले सकते हैं।
सड़क पर चलना जोखिम नहीं, बल्कि मौत को दावत देना है
यह सड़क न केवल गांव की मुख्य जीवनरेखा है, बल्कि लालकुआं व ग्रेटर नोएडा को जोडऩे वाली मुख्य लिंक भी है। हजारों वाहन, स्कूली बसें और आमजन रोज इस जानलेवा सड़क से गुजरते हैं। यह रास्ता किसी ‘स्लो मर्डर मशीनÓ से कम नहीं रह गया है।