IN8@बहादुरगढ़……जित दूध दही का खाणा, ऐसा मेरा हरियाणा, आज 49 साल का छैल गाबरू हो चुका है जिसकी सोहरत और भुजाओं की ताकत ने विदेशों में भी हरियाणा की मिट्टी की महक की ताकत का लौहा मनवाया हुआ है। नाम लेण तै धरती हालै इसे हरियाणा के छौर और लाम्बी लाम्बी पतली पतली जूं हरे बांस की पोरी इसी हरियाणा की छोरी देश विदेश के किसी कोने में पहचान की मोहताज नहीं है। हरियाणा वैसे तो पहली नवम्बर 1966 को बना था मगर मौखिक रूप से हरियाणा का इतिहास वर्षों पुराना है। 1918 में महम के नवाब ने अलग से हरियाणा प्रान्त बनाने की मांग उठाई थी जो 58 साल बाद पहली नवम्बर1966 में पूरी हुई। हरियाणा पीर पैगम्बरों का प्रान्त है जहां गरीब से अमीर और हिन्दू से मुसलमान तक प्रेम भाव से रहते हैं। यहां का हिन्दू अगर पीर पैगम्बर को मानता है तो मुस्लमान भी हिन्दू धर्म का पूरा सम्मान और सत्कार करता है। जहां के लोग सीधे साधे और दिल के सच्चे हैं।
राजनीतिक लोगों के छल कपट को छोडक़र देखा जाए तो हरियाणा जैसा कोई नहीं। भगवान श्रीकृष्ण के रथ का पहिया इसी भूमि पर घूमा और महाभारत की लड़ाई भी इसी भूमि पर हुई जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने गीता संदेश दिया। उसी गीता की शपथ न्याय दिलाने के लिए खिलाई जाती है। कुरुक्षेत्र का धर्मयुद्द परिवारवाद की राजनीति का एक अभिन्न अंग था इसलिए हरियाणा को परिवारवाद की राजनीति विरासत में मिली है। इतिहासकार मानतेे है कि हरियाणा उसी समय से अस्तित्व में है जब से सृष्टि की रचना हुई है। महाभारत और रामायण काल में भी हरियाणा का उल्लेख है। जब भी देश के उपर कोई विदेशी हमला हुआ तब खून हरियाणा के वीरों ने ही बहा कर देश की रक्षा की।
हरियाणा प्रान्त की सीमाएं कोटपूतली, देहरादून, लाहौर और फिरोजपुर झिरका तक फैली थी। भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय की राजधानी हरियाणा रोहतक थी। महर्षि चमन, वेदव्यास की कर्मभूमि हरियाणा थी। योवन को कामय रखने वाली औषधि च्वनप्राश का निर्माण महर्षि चमन ने हरियाणा के कलााहवड गांव की तपोभूमि में बनाया। चारों बेदों की रचना इसी भूमि पर हुई। सरस्वती भी इसी प्रान्त से होकर बही। हरियाणा को दिल्ली का कवच माना जाता है क्योंकि तीन तरफ से हरियाणा ही दिल्ली को सुरक्षा प्रदान करता है। जब भी दिल्ली पर कोई आपत्ति आई तो हरियाणा ही दिल्ली की ढाल बना। हरियाणा ने अंग्रेजो के जुल्म सहे तो मुगलों के अत्याचारों का बहादुरी से मुकाबला किया। आजादी के आंदोलन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और चीन, पाकिस्तान और कारगील युद्व में चीन व पाकिस्तान को छटी का दूध याद दिलाया। विदेशी आक्रमणकारियों से टक्कर लेते लेते यहां के लोग कठोर, साहसी, बलवान और बहादुर तो बने मगर राजनीतिज्ञ नहीं बन पाए जिस कारण देवी लाल जैसे महान नेता ने प्रधानमंत्री पद का ताज अपने सिर से उतार कर वी पी सिंह के सिर पर रख दिया।
विदेश आक्रमणकारियों के हमले से बचाने के लिए लोगों को हष्टपुष्ट बनाने के लिए हरियाणा में मां बाप द्वारा पीट पीट कर अपने बच्चों को दूध पिलाने की प्रथा थी ताकि वह ताकतवर बन कर हमलावरो का बहादुरी से मुकाबले करें। घर आए मेहमान को भगवान का रूप माना जाता है। खड़ी भाषा के कारण यहां के लोगों को कठोर समझे जाते हैं मगर दया की भावना यहां जितनी है उतनी कहीं नहीं है। हमेशा लड़ाई के मैदान में रहने के कारण और लड़कियों को मुगलों से बचाने के लिए लडक़ी पैदा करना अभिशाप था। यहां लडक़ी पैदा करना अभिशाप इसलिए बना क्योंकि मुगलों की टक्कर यहां के लोगों ने ही ली।