दिल्ली : कोरोना महामारी के चलते 55 साल बाद दशहरे के मौके पर लाल किला मैदान में रविवार को कोई हलचल नहीं थी। राजधानी में 1924 से रामलीला का मंचन करने वाली श्री धार्मिक लीला कमेटी के प्रचार मंत्री रवि जैन बताते हैं कि करीब 55 वर्ष बाद इस साल कोरोना के चलते ऐसी स्थिति देखने को मिली है। वर्ष 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच लड़ाई होने पर लाल किला मैदान में रामलीला का मंचन और दशहरे पर कोई कार्यक्रम नहीं हुआ था।
उन्होंने बताया कि लाल किला मैदान में आयोजित रामलीलाओं में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दशहरे पर होने वाले कार्यक्रम में पहुंचते थे। हालांकि, पिछले वर्ष ऐसा नहीं हुआ था। प्रधानमंत्री द्वारका में आयोजित रामलीला में हिस्सा लेने पहुंचे थे। जबकि राष्ट्रपति आईपी एक्सटेंशन में आयोजित रामलीला में गए थे। लाल किला से पहले गांधी मैदान में लीला का मंचन करते थे। उसके बाद परेड ग्राउंड में लीला का मंचन किया। आखिर में लाल किला मैदान के माधव दास पार्क में लीला का मंचन करने लगे।
32 साल बाद नहीं हुआ पुतला दहन
वर्ष 1989 से लाल किला मैदान में रामलीला का मंचन करने वाली नव श्री धार्मिक कमेटी के महासचिव जगमोहन गोटेवाला ने बताया कि लाल किला में आयोजित किसी न किसी रामलीला में बड़ी राजनीतिक हस्तियां दशहरा मनाने के लिए पहुंचती रही है। लेकिन इस बार कोरोना के चलते ऐसा नहीं हुआ। लाल किला मैदान में रामलीला का मंचन करने वाली लवकुश रामलीला कमेटी के अध्यक्ष अशोक अग्रवाल ने बताया कि कोरोना महामारी के चलते रामलीला का मंचन नहीं किया गया था। 32 साल में ऐसा पहली बार हुआ है कि रामलीला मंचन से लेकर लाल किला मैदान में दशहरे पर पुतला दहन का कार्यक्रम आयोजित नहीं हुआ।
बंटवारे के समय भी नहीं हुआ था मंचन
रामलीला मैदान में लीला का मंचन करने वाली श्रीरामलीला कमेटी के महासचिव राजेश खन्ना ने बताया कि वर्ष 1947 में बंटवारे के समय, भारत-चीन युद्ध और भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय रामलीला मैदान में लीला का मंचन नहीं हुआ था। देश में आपातकाल की घोषणा से पहले योगोस्लाविया के राष्ट्रपति भी रामलीला का मंचन देखने के लिए पहुंचे थे। राजनीतिक हस्तियां रामलीला मैदान में दशहरे पर आती रही हैं।