- लॉकडाउन में नही चली क्लास, फिर भी लगातार मांग रहे पूरी फीस
- बच्चों का साल बर्बाद होने की दहशत दिखाकर अभिभावकों से वसूली
दीपक वर्मा@ शामली। कोरोना संकट ने लाखों लोगों को बेरोजगार ही नहीं किया, बल्कि करोडों बच्चों की पढाई-लिखाई में खतरे में डाल दी। लॉकडाउन ने गरीब और अमीर हर किसी की रीढ़ तोड़कर रख दी है। हालात से सभी वाकिफ हैं, लेकिन इसके बावजूद भी कुछ लोग इस भीषण आपदा को कमाई के अवसर में बदल रहे हैं। जी हां..हम बात कर रहे हैं, प्राईवेट स्कूल संचालकों की, जिनके द्वारा लॉकडाउन के बाद से अब तक स्कूल ना खुलने के बावजूद अभिभावकों को फीस चुकाने के लिए लगातार मजबूर किया जा रहा है। फीस देने में आनाकानी करने पर बच्चों का साल बर्बाद करने की दहशत भी अभिभावकों के जेहन में बैठाई जा रही है।
कोरोना संकट ने सिर्फ गरीब ही नही बल्कि मध्यवर्ग के लोगों को भी आर्थिक रूप से तोड़ कर रख दिया है। सरकार एक ओर तो लोगों को राहत देने का दावा कर रही है, वहीं दूसरी ओर सरकार के आदेशों के बावजूद भी प्राईवेट स्कूल संचालक अभिभावकों से जबरन फीस वसूलने पर तुले हुए हैं। अभिभावकों द्वारा सरकार से गुहार लगाई जा रही है, लेकिन सुनने वाले बहरे हो गए हैं। ऐसे हालातों में प्राईवेट स्कूल संचालक बच्चे का साल बर्बाद करने की दहशत बैठाकर अभिभावकों से जबरन मनमानी वसूली करने पर तुले हुए हैं। दूसरी तरफ कई ऐसे बेबस अभिभावक भी हैं जिनके पास बच्चों की फीस भरने के लिए पैसे नहीं है।
आॅनलाइन पढाई अलग चुनौती
वैश्विक महामारी कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में 24 मार्च से लॉकडाउन जारी है। इसके चलते सभी सरकारी व प्राइवेट स्कूल बंद हैं। स्कूल संचालक आॅनलाइन क्लास के जरिए बच्चों को पढ़ाने का दावा कर रहे हैं, लेकिन यह सिर्फ खानापूर्ति तक सिमट कर रह गया है। फीस का दबाव बनाने वाले स्कूल संचालकों ने अभिभावकों से फीस के पैसे वसूलने के लिए अब बच्चों को आॅनलाइन क्लास से बाहर निकालकर मानसिक रूप से परेशान करना शुरू कर दिया है। वहीं बच्चे भी आॅनलाइन कक्षाओं के चलते चिडचिडे हो रहे हैं।
सरकार क्यों नही निभा रही जिम्मेदारी?
केंद्र और प्रदेश सरकार ने कोरोना महामारी को लेकर लॉकडाउन से लेकर आर्थिक पैकेज तक कई बड़े फैसले लिए हैं, लेकिन जनता के जी का जंजाल बने लॉकडाउन अवधि के लंबे-चैड़े बिजली बिल और प्राईवेट स्कूलों में बगैर क्लास के बच्चों की फीस के दबाव पर सरकार अभी तक कोई फैसला नही ले पाई है, जबकि लंबे-चैड़े पैकेज दिखाने के बजाय इन दोनों ही समस्याओं पर लिया जाने वाला फैसला सीधे जनता को प्रभावित करने वाला है। इसके बावजूद भी सरकार दोनों ही ओर चुप्पी साधे हुए हैं। अभिभावकों को सरकार की यह चुप्पी अखर रही है।
पूरी फीस तार्किक नहीं
अभिभावकों का कहना है कि आॅनलाइन पढाई के दौरान स्कूल की किसी सुविधा का इस्तेमाल नहीं होगा। बिजली, पानी खर्च नहीं होगा, खेल व अन्य गतिविधियों में छात्र शामिल नहीं होंगे। ऐसे में पूरी फीस उचित नहीं है। केन्द्र और राज्य को स्कूल प्रबंधन से बात कर बीच का रास्ता निकालना चाहिए।