राजनीतिक पार्टी हो या उसके उम्मीदवार,जनता भरोसे और एक उम्मीद से अपने जिले और मोहल्ले के प्रत्याशी को विजयी बनाती है। जनता उस प्रत्याशी को अपने जिले, नगर, मोहल्ले और गली के विकास को देखते हुए अपना नेता चुनती है। लेकिन नेता भी दोगले पन पर रहते हैं। जब दिल करता है तब पार्टी से इस्तीफा दे देते हैं। पार्टी बदल ली जाती है बिना जनता से पूछे! ऐसे में भोली भाली जनता के सपने पल में चूर हो जाते हैं । जनता जिस पार्टी को वोट नहीं देना चाहती, विजयी प्रत्याशी जीतने के बाद उसी पार्टी को अपना समर्थन दे दे, ये तो जनता के साथ अन्याय ही होता है।
अब ऐसे में जनता क्या करें
अगर जब संविधान में लिखा है कि प्रत्याशी जब चाहे पार्टी बदल सकते हैं या फिर विजयी होने के बाद अपना समर्थन जिस मर्जी पार्टी को दें दें जिसे जनता पसंद नहीं करती। ऐसे में संविधान के अन्दर ये भी प्रवाधान लाना चाहिए कि प्रत्याशी के जीतने के बाद जनता भी जब चाहे अपना वोट बदल सके या कैंसिल कर सके। इससे बेचारी जनता ठगने से बच सकती है। इससे प्रत्याशियों में डर भी बना रहेगा। कोई भी प्रत्याशी विजयी होने के बाद एक बार जरूर सोचेगा की जनता ने मुझे क्यों चुना है और मैं क्या कर रहा हूं। इस प्रावधान से पार्टी बदलने का सिस्टम खत्म हो सकता है।
प्रमोद शर्मा (संपादक)