कोरोना की माररू शिक्षा के कई मंदिरों पर लग सकता है स्थायी ताला?

  • महामारी से पनपे हालातों के बीच निजी विद्यालय चलाना हुआ मुश्किल
  • भवनों का किराया, स्कूली वाहनों की किश्त, अन्य खर्च उठाने में दिक्कत

दीपक वर्मा@ शामली। कोरोना महामारी के बीच प्राईवेट स्कूल संचालकों द्वारा अभिभावकों से फीस वसूली को लेकर विवाद खड़े हो रहे हैं। अभिभावकों और उनसे जुड़े संगठनों द्वारा इसके लिए विरोध प्रदर्शन और शिकायतों का दौर भी जारी है, लेकिन हकीकत यह भी है कि कोरोना के प्रकोप के चलते निजी स्कूल चलाने वालों की आर्थिक स्थिति भी डांवाडोल हो गई है। कुछ चंद बड़े रूतबे वाले लोगों के शिक्षण संस्थानों को छोड़ दें, तो अन्य प्राईवेट शिक्षालय इन दिनों बहुत ही बुरे दौर से होकर गुजर रहे हैं। इनमें कुछ ऐसे विद्यालय भी हैं, जो किराये के भवनों में संचालित हैं, जिनके संचालक उन्हें बेचने की कोशिशों में जुट गए हैं। कोरोना महामारी के चलते सरकार ने 22 मार्च को देश में लॉकडाउन लागू कर दिया था। इसके बाद से अब तक कई आर्थिक गतिविधियों को अनलॉक कर दिया गया है, लेकिन शिक्षा पर अभी भी लॉकडाउन ही जारी है। यदि शामली जिले की बात करें, तो यहां पर चंद प्राईवेट स्कूलों को छोड़ दिया जाए, तो अन्य स्कूलों की स्थिति बेहद ही खस्ताहालत में पहुंच गई है। इनमें कुछ प्राईवेट स्कूल ऐसे भी हैं, जो किराए की बिल्डिंग में चल रहे हैं, जबकि बगैर मान्यता के चलते चलने वाले कई प्ले स्तरीय स्कूल और अन्य जूनियर विद्यालय तो बिकने की कगार पर पहुंच चुके हैं।

शुरू हुआ मोलभाव, संचालकों ने खड़े किए हाथ
शामली जिले में कई छोटे स्तर के विद्यालयों के औने पौने दामों में बिकने की सूचनाएं मिल रही है। यूं तो प्राईवेट स्कूलों के संचालन के लिए कार्यकारिणी का गठन किया जाता है, लेकिन यह भी सत्य है हकीकत में संचालन एक ही व्यक्ति के हाथों में होता है, जो स्कूल चलाने के लिए फण्डिंग करता है। पिछले करीब छह महीने से स्कूल बंद होने के चलते ऐसे संचालक अब आगे का खर्चा उठाने से हाथ खड़े कर चुके हैं। ऐसे लोग अब स्कूलों को औने पौने दामों में बेचने की जुगत भिड़ा रहे हैं, ताकि नुकसान को कुछ हद तक कम किया जा सके।

कौन भरेगा वाहनों की किश्त…?
प्राईवेट स्कूलों में बच्चों का एडमिशन कराने से पहले अभिभावक आवागमन के लिए वाहन की व्यवस्था पर नजर दौड़ाते हैं। इसी के चलते अधिकांश स्कूलों द्वारा या तो किराए के वाहन इस्तेमाल किए जाते हैं, या फिर वाहनों को लोन पर खरीदा जाता है। लोन पर खरीदे जाने वाले वाहनों की किश्त पिछले छह महीनों से बंद चल रहे स्कूल संचालकों पर भारी पड़ रही है। इसके अलावा बिजली, किराया व अन्य खर्चे भी तंगी से जूझ रहे स्कूलों के खर्चे बढ़ाने का काम कर रहे हैं।

किड्स स्कूलों पर लटके ताले…
जिले में प्ले स्तर के कई स्कूल हैं, लेकिन फिलहाल कुछ बड़े ग्रुप के किड्स स्कूलों के अलावा अन्य पर ताले लटके नजर आ रहे हैं, इनमें से कई स्कूलों के तो स्थायी रूप से बंद होने की सूचनाएं भी मिल रही हैं। स्कूलों के बंद होने का बड़ा कारण यह भी है कि संचालकों को लग रहा है कि कोरोना के बढ़ते असर के कारण शायद सरकार सितंबर तक भी पांचवीं तक के विद्यालयों को खोलने का जोखिम नही उठाएगी।