फिल्म ‘जुग जुग जियो’ एक तरह से धर्मा प्रोडक्शंस की ही 21 साल पहले रिलीज हुई फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ का न्यू मिलेनियल्स के लिए बना मॉडर्न संस्करण है। ये उस दौर की कहानी है जिसमें बाप को पटरी पर लाने के लिए बेटे को मैदान में उतरना होता है। मैदान में परिवार की तीनों शादियां हैं।
दो जान पहचान वाले युवा शादी करते हैं और नौबत पांच साल में ही तलाक की आ जाती है। दूसरा दंपती सीनियर है। ऊपर ऊपर सब ठीक चल रहा है। बेटी की शादी होने वाली है। लेकिन, पिता को अब भी प्यार की तलाश है। पत्नी उसका ख्याल तो रखती है लेकिन उसके साथ वह रोमांटिक नहीं हो पाता है।
दो हो चुकी हैं, तीसरी होने वाली है। इस तीसरी शादी की तैयारियों के बीच ही घर की दो शादियों के तार बिखर रहे हैं। फिल्म ‘जुग जुग जियो’ तीनों शादियों को उलट पलट कर, बदल बदल कर अलग अलग नजरिये से परखती है। त्याग, बलिदान, अपेक्षाओं, आकांक्षाओं और उम्मीदों व भरोसों की नावों पर सवार ये कहानी जिंदगी की असली हकीकतों की मंझधार में हिचकोले खाते आगे बढ़ती है।
जुग जुग जियो का रिव्यू
रिश्तों की दरार और तलाक के मुद्दे पर जब फिल्म की शुरुआत होती है, तो मन में यह सवाल जरूर उठता है कि निर्देशक राज अगले पड़ाव में क्या नया परोसेंगे? मगर फिर यह कहानी रिश्तों के ताने-बानों के साथ कई दिलचस्प मोड़ लेती है। कहानी में पत्नी के ज्यादा कमाने पर पति के अहम को पहुंचने वाली ठेस, शादी के बाद मां बनने का प्रेशर, शादी के बाद सब सही हो जाएगा वाली सोच, सेटल होने के लिए की जाने वाली शादी जैसे कई जरूरी मुद्दों को ह्यूमरस अंदाज में पेश करती है। फर्स्ट हाफ की तुलना में सेकंड हाफ ज्यादा मजबूत है।
फिल्म की लंबाई थोड़ी कतरी जानी चाहिए थी। फिल्म में ‘रिश्ता टूटने की कोई एक वजह नहीं होती, बहुत सी अधूरी लड़ाइयों की थकान होती है’ जैसे सोच को इंस्पायर करने वाले डायलॉग हैं, वहीं दुनिया का सबसे बड़ा फेस्टिवल पता है, कौन सा है? ‘घरवाली’, क्योंकि उसको बार-बार मनाना पड़ता है’ जैसे वॉट्सऐप डायलॉग भी हैं। फिल्म के कॉस्ट्यूम और सेट की भव्यता देखते ही बनती है, मगर सिनेमैटोग्राफी औसत है। म्यूजिक की बात करें, तो ‘नच पंजाबन’ गाना म्यूजिक चार्ट पर काफी ऊपर है। ‘रंगी सारी’, ‘दुपट्टा’ और ‘नैन ता हीरे’ जैसे गाने भी शानदार हैं।