श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस पर दी श्रृद्धांजलि

प्रमोद शर्मा@ गाजियाबाद। भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस पर मंगलवार को मेयर आशा शर्मा ने राजनगर कैंप कार्यालय पर उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रृद्धांजलि अर्पित की। मेयर आशा शर्मा ने कहा कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक देशभक्त और स्वाभिमानी राष्ट्रवादी थे और उन्होंने भारत की एकता और अखंडता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। एक मजबूत और एकजुट भारत के लिए उनका जुनून हमें प्रेरित करता है। और भारतीयों की सेवा करने की ताकत देता है। राजनीति की अलख जगाने वाले मुखर्जी ने सबसे पहले धारा 370 के खिलाफ आवाज उठाई थी। उन्होंने नेहरू की तुष्टीकरण की नीति का विरोध किया। बुलंदशहर रोड औद्योगिक क्षेत्र स्थित डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी पार्क में भाजपा के महानगर अध्यक्ष संजीव शर्मा के नेतृत्व में भाजपाइयों ने श्रद्धांजलि अर्पित की। महानगर अध्यक्ष संजीव शर्मा ने कहा कि अनुच्छेद 370 के विरोध में उन्होंने आजाद भारत में आवाज उठाई थी। ‘एक देश में दो निशान,दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे। वे चाहते थे कि कश्मीर में जाने के लिए किसी को अनुमति न लेनी पड़े। इस दौरान महानगर महामंत्री पप्पू पहलवान,सुशील गौतम,रनीता सिंह,चमन चौहान,राजेश त्यागी,कुलदीप,संजीव चौधरी,संजय शुक्ला,धीरज शर्मा,मीडिया प्रभारी नीरज गोयल आदि मौजूद रहे। मोदीनगर में भाजपा के जिलाध्यक्ष दिनेश सिंघल के मोदीनगर कार्यालय पर भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 66वीं पुण्यतिथि पर जिला अध्यक्ष दिनेश सिंघल ने उनके जीवन पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस दौरान अमित चौधरी,देवेंद्र चौधरी, सभासद सुरेंद्र राजन,विमल शर्मा,अमित सिंघल आदि मौजूद रहे।

भाजपा नेता राजीव अग्रवाल ने भी अपने कार्यालय पर डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रृद्धांजलि अर्पित की। राजीव अग्रवाल ने बताया कि डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक थे। राष्ट्रीयता के समर्थक और सिद्धांत वादी थे, जब कभी भारत की एकता अखंडता एक राष्ट्रीयता की बात होती तब डॉक्टर मुखर्जी द्वारा राष्ट्र जीवन में किए गए योगदान की चर्चा होती। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था या तो मैं आपका भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा। 1953 में बिना परमिट लिए जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े थे। वहां पहुंचते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, नजर बंद कर दिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमई परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई थी।