राजनैतिक प्रशिक्षण केंद्र को जमीन देने के लिए निगम ने उजाड़े आशियाने

मकान टूटते देख बिलखते रहे बच्चे, एक पल में ढेर हुआ बरसों का आशियाना
सामान को बाहर फेंककर निगम ने किया मकानों को जमींदोंज

विनोद पांडेय @ गाजियाबाद। राजनैतिक प्रशिक्षण केंद्र को जमीन देने के लिए शांति नगर-लोहिया विहार में शनिवार को गरीबों के मकान बचाने के लिए कोई भी राजनीतिक दल आगे नहीं आया। नगर निगम प्रशासन की अगुवाई में शनिवार सुबह मकानों से महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को पुलिस ने खींच-खींच कर घर से बाहर निकाला।

रोती बिलखती महिलाओं और बच्चों के साथ इस दौरान पुलिस ने बदसलूकी की। इसके बाद लोगों के सामान को बाहर फेंककर निगम ने उनके सपनों के मकानों को जमींदोंज कर दिया। अपने मकान टूटते देख महिलाएं और बच्चे बिलखते रहे मगर नगर निगम और न ही पुलिस को तरस आया। तोडफ़ोड़ की कार्रवाई के दौरान पुलिस और प्रशासन को भारी हंगामे की आशंका बनी हुई थी। इसी के चलते भारी संख्या में पुलिस-पीएसी के जवानों को पहले शांति नगर में तैनात किया गया था। यहां पहले ही पूरे एरिया को छावनी बना दिया गया।

इसके बाद सिटी मजिस्ट्रेट विपिन कुमार, सीओ आलोक दूबे आदि फोर्स के लोग मौजूद रहे। तोडफोड़ की आशंका को देखते हुए बड़ी संख्या में लोग एकत्र हो गए। प्रशासन को लग रहा था कि तोडफोड़ की कार्रवाई होने पर पथराव हो सकता है। ऐसे में पुलिस ने बड़ी ही सूझबूझ से कार्य किया। सबसे पहले नगर निगम ने दो तीन मंजिले मकानों पर दावा बोला। लोगों ने अपने मकान बचाने के लिए घरों की अंदर से कुंडी बंद की हुई थी। इसके बाद नगर निगम और पुलिस की टीम ने मकानों को तोड़ डाला। इसके बाद सबसे पहले महिला पुलिस एक्टिव हुई। उन्होंने महिलाओं और बच्चों को मकानों से खींच-खींच कर बाहर निकाला।

इसी बीच मकान बचाने की जद्दोजहद में एक व्यक्ति राजू तीसरी मंजिल पर चढ़ गया। उसने मकान से नीचे कूदने की कोशिश की। इसी बीच पुलिस की टीम एक्टिव हो गई। पुलिस ने तीसरी मंजिल पर बना गेट तोड़ दिया और उसे भी जीने से खींचते-खींचते हुए नीचे लाए। इसके बाद पुलिस ने इन लोगों को कब्जे में लेकर इन गरीबों का पूरा सामान बाहर एक खुले प्लॉट में फेंक दिया। अपना मकान टूटते देख एक महिला निगम और पुलिस के अधिकारियों के सामने ही उन्हें बद्दुआ देते हुए रोती रहीं। निगम की ओर से इस अभियान की अगुवाई प्रॉपर्टी अफसर आरएन पांडेय ने की। वह भी बेबस नजर आए, उन्हें भी ऊपर का हुकम बजाना था। इसके बाद इसी तरह से पुलिस मकानों से लोगों को खींचकर बाहर निकालती रहीं। महिलाएं और बच्चे बिलखते रहे और सरकार का बुल्डोजऱ चलता रहा। इस तरह से 11 गरीब लोगों के सपनों के मकानों को उनकी आंखों के आगे ही जमींदोंज कर दिया गया।

सुनवाई से पहले ही तोड़ दिए गरीबों के मकान-मकानों को बचाने के लिए न कांग्रेस, न ही लोकदल और सपा सामने आई। भाजपा का तो विरोध करने का सवाल ही नहीं था। मगर इस बीच अधिवक्ताओं का एक दल तोडफ़ोड़ की कार्रवाई रूकवाने की कोशिश में भी लगा रहा। अधिवक्ता आबिद ने बताया कि इस मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई इसी सोमवार को होने जा रही है। उन्होंने तोडफ़ोड़ की कार्रवाई रूकवाने के लिए अपर नगर आयुक्त आरएन पांडेय से भी बात की। मगर वह कार्रवाई रोकने को राज़ी नहीं हुए। पांडेय ने अधिवक्ताओं से कहा कि अगर आपके पास कोर्ट से स्टे है तो ही कार्रवाई रूक सकती है। मेयर-नगर आयुक्त नहीं मिले-गरीबों के मकान बचाने के लिए अधिवक्ताओं ने कोशिश की।

एडवोकेट आबिद ने बताया कि वह कार्रवाई रूकवाने के लिए मेयर आशा शर्मा से मिलने उनके आवास पहुंचे। लेकिन उन्हें बताया गया कि मेयर तीन-चार दिनों के लिए बाहर गई हैं। नगर आयुक्त महेंद सिंह तंवर से भी मुलाकात नहीं हो पाई। नगर निगम का कहना है कि उसने शनिवार को 11 मकान तोड़े हंै। इन लोगों को बेदखली की कार्रवाई जिला प्रशासन शुक्रवार को ही मकानों पर नोटिस चस्पा कर पूरी कर चुका था।

अपर नगर आयुक्त आरएन पांडेय ने बताया कि शनिवार को केवल 11 मकानों को तोड़ा गया, बाकी मकानों को तोडने की कार्रवाई बाद में की जाएगी। प्रशिक्षण केंद्र करीब 200 करोड़ रुपये का है। इसके लिए निगम ने 52 हजार वर्ग मीटर जमीन आवंटित की थी। इसमें से जल निगम को केवल 42 हजार वर्ग मीटर जमीन पर ही कब्जा दिया गया है, बाकी जमीन पर कब्जे के लिए निगम की कोशिश है।

निगम का दावा है कि उसके यहां कुल 124 मकान सरकारी जमीन पर बनाए गए थे। इनमें से सबसे पहले 23 मकान और प्लॉट तोड़े गए थे। बाकी 101 और मकानों को तोडने के लिए निगम ने नोटिस जारी किए थे। इसमें से 11 मकान तोड़े गए हैं। बाकी 90 मकानों को बचाने के लिए अब लोगों को सोमवार को होने वाली हाईकोर्ट में सुनवाई पर ही कुछ उम्मीदें टिकी हैं। यहां बन रहे राजनैतिक प्रशिक्षण केंद्र को जमीन देने के लिए सरकारी जमीन पर बने मकानों को तोड़ा जा रहा है।