अपने लिए जिए तो क्या जिए, तू जी ए दिल जमाने के लिए

दीपक वर्मा@ शामली।वास्तव में विश्व रक्तदान दिवस के अवसर पर यह पंक्तियां एहसास कराती हैं कि समाज में उसी व्यक्ति की जरूरत और उपयोगिता है जो अपने साथ-साथ समाज के लिए भी उपलब्ध होता है। प्रतिवर्ष अनेकों अनेकों मौत जरूरतमंद व्यक्ति को समय पर रक्त ना मिलने के कारण हो जाती है। संपूर्ण विश्व को रक्तदान के लिए मशाल वाहक के रूप में राह दिखाने वाले और रक्तदान के लिए जनमानस में बीज रोपित करने का काम करने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिक कार्ल लैंडस्लाइन ने किया जिनकी याद में पूरी दुनिया विश्व रक्तदान दिवस को मनाती है। वास्तव में रक्तदान कितना महत्वपूर्ण विषय है आज से 90 वर्ष पूर्व भी इस बात को उस समय में भी माना गया और 1930 में रक्त कणों ए बी और ओ समूह में वर्गीकृत किए जाने और रक्तदान पर पूरी दुनिया में चेतना करने के लिए कारण लैंडस्टाइन को नोबेल पुरस्कार दिया गया। भारत की सवा अरब की आबादी में आज भी केवल 1 प्रतिशत लोग स्वेच्छा से रक्तदान करते हैं वही दुनिया के अनेकों देश अमेरिका जर्मनी और फ्रांस में 80 फीसदी तक लोग स्वेच्छा से रक्तदान करते हैं इसलिए समझ में आता है की भौतिकता के साथ-साथ अभी भी कहीं ना कहीं मानसिक चेतना और जागृति की आवश्यकता है। भारत बड़ा देश होने के साथ-साथ ग्रामीण पृष्ठभूमि का देश माना जाता है जहां पर अनेकों प्रकार की भ्रांतियां जनमानस के मन में घर करे हुए हैं जैसे रक्तदान करने के बाद शारीरिक कमजोरी आ जाना लेकिन इस विषय पर सरकार और समाजसेवी संस्थाओं द्वारा किए जा रहे भागीरथी प्रयास संपूर्ण तस्वीर को पटल पर अंकित कर रहे हैं लेकिन शायद यह पर्याप्त नहीं होगा। इसके लिए हम सबको स्वयं जागृत होकर आगे आना होगा क्योंकि रक्तदान से जुड़े तकनीकी, चिकित्सीय और सामाजिक पक्ष के वह बिंदु जिन पर जनमानस से भ्रम रहता है। वह सब बातें आईने की तरह साफ है क्योंकि चिकित्सक और मेडिकल साइंस इस बात की तस्दीक करती है कि रक्तदान करने के बाद लाल रक्त कणिकाओं का निर्माण शरीर अपनी जरूरत के अनुसार पुनः कर लेता है और किसी प्रकार की किसी कोई भी कमजोरी रक्तदान करने वाले व्यक्ति के अंदर नहीं होती। प्रतिवर्ष हम देखते हैं लाखों जाने बचाई जा सकती हैं बशर्ते उन सभी को समय पर रक्त की उपलब्धता हो। हालांकि जहां एक और समजदेवी संस्थाएं और सरकार निरंतर रक्तदान जैसे नेक कार्य के लिए सामाजिक चेतना का प्रयास कर रही है वही इस कार्य में ऐसे लोग भी जुड़े हुए हैं जिन्होंने इस पुण्य कार्य को भी आजीविका का जरिया बना लिया है। जिस वजह से समाज के लोग रक्तदान करने से हिचक जाते हैं, साथ ही साथ रक्तदान से जुड़े करने वाले सभी रक्त दान दाताओं को प्रोत्साहन मिलना अनिवार्य है तथा एक ऐसी व्यवस्था हो जिसमें जिस व्यक्ति ने रक्तदान किया है, उस व्यक्ति को आवश्यकता पड़ने पर उतना रक्त निशुल्क और बिना दिक्कत के उपलब्ध हो। अंत में यहीं कहूंगा की रक्तदान जीवन बचाने की वह मुहिम है जिसमें पाने वाले के साथ साथ लक्ष्य देने वाले को भी अत्यंत प्रसन्नता और मानसिक संतुष्टि का अनुभव होता है, आध्यात्मिक तौर पर भी यदि बात करूं तो रक्तदान व्यक्ति द्वारा संचित कर्मों का फल बनकर कर व्यक्ति के साथ जाता है इसीलिए वैज्ञानिक सामाजिक चिकित्सीय और धार्मिक आधार पर भी जिस रूप में रक्तदान का संदेश समाज में किया जाए वही बेहतर होगा।

डॉ अनुराग शर्मा
प्रवक्ता वी वी इंटर कालेज शामलीं
कार्यक्रम अधिकारी राष्ट्रीय सेवा योजना