जनकपुरी में शिवजी का धनुष तोड़ सीता के हुए राम

IN8@गुरुग्राम……जैकमपुरा स्थित श्री दुर्गा रामलीला कमेटी की ओर से तीसरे दिन की राम लीला में सीता स्वयंवर और भगवान परशुराम-लक्ष्मण संवाद तक की लीला दिखाई गई। कोरोना महामारी के चलते इस बार कोविड19 के नियमों को देखते हुए राम लीला की जा रही है। तीसरे दिन की लीला में दलीप भारद्वाज, विकास गुप्ता, गगन गुलाटी, खुशी राम, अमित सैनी की अहम भूमिका रही।
तीसरे दिन लीला की शुरुआत ताड़का वध के बाद गुरु विश्वामित्र (अशोक सिरोडिय़ा) के साथ काफी समय तक राम-लक्ष्मण (करण बख्शी-समीर तंवर) ने ऋषियों के साथ वनों में ही समय बिताया। गुरु विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को गंगा मईया के दर्शन कराकर उन्हें इसके इतिहास से अवगत कराया। इसके बाद घूमते हुए वे जनकपुरी में राजा जनक (अशोक सौदा) के दरबार में जा पहुंचे। उनके आने की समाचार सुनकर राजा जनक प्रसन्न हुए और खुद जाकर उनका स्वागत किया। इसी समय राजा जनक ने सीता का स्वयंवर भी रखा हुआ था।

इसकी जानकारी गुरू विश्वामित्र को भी दी गई। स्वयंवर में खुद के लिए अच्छा वर पाने की इच्छा लिए सीता (कुणाल गुप्ता) अपनी सखियों के साथ बगिया में मां गिरिजा जी की पूजा करने जाती है। राजा जनक ने सीता जी के स्वयंवर की शर्त यह थी कि जो भी शिवजी के इस धनुष को उठा उस पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा, सीता उसी के गले में वर माला डालेगी। सिंह गर्जना के साथ रावण (अनिल वर्मा) राजा जनक के दरबार में प्रवेश करते हैं। जब वे धनुष उठाने में असमर्थ साथ ही सीता को धमकी भरे शब्दों में यह कह जाते हैं कि सीते, एक दिन तुझे लंका जरूर दिखाऊंगा।
सभी राजा-राजकुमारों द्वारा धनुष उठाने में असफलता पर राजा जनक कहते हैं-हे दीप-दीप के राजा जन हम किसे कहें बलशाली हैं, हमको तो यह विश्वास हुआ पृथ्वी वीरों से खाली है। राजा जनक की यह बात सुनकर लक्ष्मण क्रोधित हुए और उठकर बोले राजा जनक यह बात कहना उन्हें शोभा नहीं देती। अगर उनके भइया राम उन्हें आज्ञा दें तो वह अभी इस धनुष को उठाकर कई टुकड़े कर दें। इसके बाद राम उठे और लक्ष्मण को शांत करते हुए कहा-लडऩा अच्छा नहीं है भाई, टुक लक्ष्मण करो समाई।

राजा जनक से वार्ता के बाद संगीत की स्वर लहरियों के बीच राम आगे बढ़े और शिवजी के धनुष को प्रणाम किया और उठाकर जब प्रत्यंचा चढ़ाने लगे तो धनुष के दो टुकड़े हो गए। इसके बाद मंच पर ही सीता जी व राम जी ने एक-दूसरे को माला पहनाई।
बेहतरीन रहा लक्ष्मण-परशुराम संवाद
रामलीला में लक्ष्मण-परशुराम संवाद बेहतरीन रहा। जब राम-सीता ने एक-दूसरे का माला पहना दी तो राजा जनक के दरबार में भगवान परशुराम (मास्टर सुरेश सहरावत) पहुंचते हैं। टूटा हुआ धनुष देखकर वे क्रोधित हुए और बोले-ओ जनक जरा जल्दी बता ये धनुष किसने तोड़ा है, इस भरे स्वयंवर में किसने सीता से नाता जोड़ा है। जवाब में राम जी ने कहा-जो कृपा पात्र हैं गुरुओं का वह कब किससे डर सकता है, जिस पर कृपा हो ब्राह्मणों की यह काम वही कर सकता है। इसके बाद भी परशुराम शांत नहीं हुए और वे गुस्से से आग-बबुला होते रहे। फिर लक्ष्मण-परशुराम के बीच दमदार तरीके से संवाद हुआ। फिर शांत होने के बाद भगवान परशुराम ने श्रीराम को प्रणाम किया।