निषादों को दु:ख देकर बीजेपी खुश नहीं रह सकती है

रामराज्य का दंभ भरने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार में भगवान राम के परम मित्र निषादराज गुह्य के अनुयाई आज ऐसी जिंदगी जीने को मजबूर हैं जिसकी राम राज्य में कल्पना भी नहीं की जा सकती । निषाद जाति भारतवर्ष की मूल एवं प्राचीन जातियों में से एक है । रामायण काल में निषादों की अपनी अलग सत्ता व संस्कृति थी । निषाद एक जाति नहीं बल्कि चारों वर्णों में अलग ‘पंचम वर्ण’ के नाम से जाना जाता था । आदि कवि महर्षि वाल्मीकि, विश्व गुरु महर्षि वेदव्यास, भक्त प्रह्लाद और रामसखा निषादराज गुह्य जैसी महान आत्माओं ने इस जाति को सुशोभित किया है । स्वतंत्रता आंदोलन में भी इस समुदाय के सूर्य वीरों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था लेकिन आज इस समुदाय के लोगों में वैचारिक भिन्नता के कारण समुदाय का विकास अवरुद्ध सा हो गया है । उप जातियों के आधार पर समुदाय का विखंडन हो रहा है । निषाद समुदाय भाषा एवं क्षेत्र के अनुसार विभिन्न नामों से जाना जाता है -जैसे कश्यप, मल्लाह,बाथम, रायकवार इत्यादि ।
आजादी के बाद से सभी राजनीतिक पार्टियों ने इन जातियों को ठगा है। निषाद समुदाय को कई राज्यों में अच्छी खासी आबादी होने के बाद भी कभी उचित सम्मान नहीं मिला । हमेशा इनके साथ छलावा किया गया है । कई राज्यों में निषाद समुदाय को अनुसूचित जाति तो कई बड़े राज्य ऐसे हैं जहां पर इस समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग में रखा गया है जबकि इस समुदाय की हालत इतनी खराब है कि इस समुदाय को अनुसूचित जनजाति मैं रखा जाना चाहिए। निषाद समुदाय में शिक्षा का स्तर इतना नीचे है कि अगर आप किसी निषादों के गांव में जाओगे तो मुश्किल से एक या दो बच्चे आपको स्नातक मिलेंगे । वही बात अगर परास्नातक की करें तो निषाद समुदाय के 2- 4 गांव में एक-दो बच्चे मिल जाए तो बहुत बड़ी बात होगी रोजगार की बात करें तो इनके पास रोजगार के नाम पर कुछ नहीं होता है ।

इस समुदाय के कुछ काम थे जैसे-नाव चलाना, मछली पकड़ना आदि। आजकल इनके इन रोजगार को भी छीन लिया गया है । तालाब-नदियों पर अवैध कब्जे हो रहे हैं । आजकल तो नाव चलाने का काम भी इन से छीन लिया गया है । नाव चलाने के ठेके भी प्रशासन अन्य जातियों के लोगों को दे देते हैं । राजनीतिक पार्टियों को इस समुदाय की याद सिर्फ चुनाव के समय पर आती है बाकि 5 साल इस समुदाय को कोई नहीं पूछता है । देश में इतनी बड़ी आबादी होने के बाद भी इस जाती हो राजनीति में उचित स्थान नहीं मिल रहा है ।
अब पिछले कुछ समय से निषाद समुदाय की दो पार्टियां उभर कर सामने आई है जिनसे समाज को कुछ उम्मीद जगी है कि अब समाज को कुछ मान-सम्मान मिलेगा और समुदाय की जो वर्षों पुरानी मांगे हैं वह पूरी हो सकती है । बिहार में अभी कुछ समय पहले चुनाव हुए। बिहार में निषाद समुदाय के एक बड़े नेता हैं मुकेश साहनी ।

जो अपने आपको सन ऑफ मल्लाह बोलते हैं । उनकी पार्टी है विकासशील इंसान पार्टी ‘वीआईपी’ जो भारतीय जनता पार्टी के साथ एनडीए गठबंधन में शामिल है और बिहार सरकार में भी शामिल है । वह लगातार समुदाय के आरक्षण की बातें करते रहते हैं । अब बात करते हैं उत्तर प्रदेश की जहां पर निषाद समुदाय की एक बहुत बड़ी संख्या रहती है । उत्तर प्रदेश में लगभग 150 से 160 सीटों पर निषाद समुदाय अपना असर रखता है । कई तो ऐसी सीट है जहां एक तरफा जिता सकता है ।

पिछले विधानसभा चुनाव में निषाद समुदाय ने भाजपा को एक तरफा वोट दिया था जिस कारण एक प्रचंड जीत भाजपा को मिली थी । चुनावों से पहले भाजपा ने निषाद समुदाय से आरक्षण का वादा किया था लेकिन 5 साल पूरे होने को हैं लेकिन आज तक उस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया है । उत्तर प्रदेश में इस समुदाय की एक पार्टी है निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल- ‘निषाद पार्टी’ । जिसके अध्यक्ष डॉ.संजय कुमार निषाद है । उनकी पार्टी का भी भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन हैं। उनके बेटे प्रवीन कुमान निषाद भाजपा के सांसद भी हैं। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को उसका वायदा याद दिलाया है । डॉ. संजय कुमार निषाद ने भाजपा से कहा है कि ‘निषादों को दुख देकर भाजपा खुश नहीं रह सकती है’। अब देखते हैं रामराज्य का बखान करने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार में निषादों का इतना भला होता है।

भरत कुमार निषाद (वरिष्ठ पत्रकार)